दोहा
हुए नामवर बेनिशां कैसे कैसे,
ज़मीं खा गयी नौजवान कैसे कैसे।
आज जवानी पर इतराने,
वाले कल पछतायेगा,
चढ़ता सूरज धीरे धीरे,
ढलता है ढल जायेगा,
ढल जायेगा, ढल जायेगा,
ढल जायेगा, ढल जायेगा।।
तू यहाँ मुसाफ़िर है,
ये सराये फ़ानी है,
चार रोज़ का मेहमां,
तेरी ज़िन्दगानी है,
जन, ज़मीं, ज़र, जेवर,
कुछ ना साथ जायेगा,
खाली हाथ आया है,
खाली हाथ जायेगा।।
जानकर भी अनजाना,
बन रहा है दीवाना,
अपनी उम्र-ए-फ़ानी पर,
तन रहा है दीवाना,
किस कदर तू खोया है,
इस जहान के मेले में,
तू खुदा को भूला है,
फँसके इस झमेले में।।
आज तक ये देखा है,
पाने वाला खोता है,
ज़िन्दगी को जो समझा,
ज़िन्दगी पे रोता है,
मिटने वाली दुनिया का,
ऐतबार करता है,
क्या समझ के तू आखिर,
इससे प्यार करता है।।
अपनी अपनी फ़िक्रो में,
जो भी है वो उलझा है,
ज़िन्दगी हक़ीक़त में,
क्या है कौन समझा है,
आज समझ ले, कल ये मौका,
हाथ ना तेरे आयेगा,
ओ ग़फ़लत की नींद में,
सोने वाला धोखा खायेगा।।
चढ़ता सूरज धीरे धीरे,
ढलता है ढल जायेगा,
ढल जायेगा, ढल जायेगा,
ढल जायेगा, ढल जायेगा।।
मौत ने ज़माने को,
ये समां दिखा डाला,
कैसे कैसे रुस्तम को,
ख़ाक में मिला डाला,
याद रख सिकन्दर के,
हौसले तो आली थे,
जब गया था दुनिया से,
दोनों हाथ खाली थे।।
अब ना वो हलाकू है,
और ना उसके साथी हैं,
जंगजू वो पोरस है,
और ना उसके हाथी हैं,
कल जो तनके चलते थे,
अपनी शान-ओ-शौकत पर,
शम्मा तक नहीं जलती,
आज उनकी तुरबत पर।।
अदना हो या आला हो,
सबको लौट जाना है,
मुफ़्लिस हो या तवंगर,
क़ब्र ही ठिकाना है,
जैसी करनी वैसी भरनी,
आज किया कल पायेगा,
सर को उठाकर चलने वाला,
एक दिन ठोकर खायेगा।।
चढ़ता सूरज धीरे धीरे,
ढलता है ढल जायेगा,
ढल जायेगा, ढल जायेगा,
ढल जायेगा, ढल जायेगा।।
मौत सबको आनी है,
कौन इससे छूटा है,
तू फ़ना नहीं होगा,
ये ख़याल झूठा है,
साँस टूटते ही सब,
रिश्ते टूट जायेंगे,
बाप माँ बहन बीवी,
बच्चे छूट जायेंगे।।
तेरे जितने हैं भाई,
वक़्त का चलन देंगे,
छीनकर तेरी दौलत,
दो ही गज़ कफ़न देंगे,
जिनको अपना कहता है,
सब ये तेरे साथी हैं,
क़ब्र है तेरी मंज़िल,
और ये बाराती हैं।।
ला के कब्र में तुझको,
पूर तपाक डालेंगे,
अपने हाथों से तेरे,
मुँह पे ख़ाक डालेंगे,
तेरी सारी उल्फ़त को,
ख़ाक में मिला देंगे,
तेरे चाहने वाले,
कल तुझे भुला देंगे।।
इसलिए ये कहता हूँ,
खूब सोच ले दिल में,
क्यूँ फंसाये बैठा है,
जान अपनी मुश्किल में,
कर गुनाहों पे तौबा,
आक़िबत सम्भल जाये,
दम का क्या भरोसा है,
जाने कब निकल जाये।।
मुट्ठी बाँध के आने वाला,
हाथ पसारे जायेगा,
धन दौलत जागीर से तूने,
क्या पाया क्या पायेगा,
चढ़ता सूरज धीरे धीरे,
ढलता है ढल जायेगा,
ढल जायेगा, ढल जायेगा,
ढल जायेगा, ढल जायेगा।।