दोहा
अगर गुजरे तू राह से मेरी,
कहीं बाद में फिर जाना,
सबसे पहले इस लक्खा की,
कुटिया में माँ आ जाना।।
फुर्सत मिले तो एक बार माँ,
आजा नैन निहारे तेरी राह माँ,
फुरसत मिले तो एक बार।।
सब जानती हो क्या चाहता हूँ,
मैं कहना न सकूँगा,
इतना समझ लो माँ के बिना मैं,
रह न सकूँगा,
कबतक करूँ इंतजार,
आजा नैन निहारे तेरी राह माँ,
फुरसत मिले तो एक बार।।
मैंने न देखे जीवन में अपने कभी,
दो पल खुशी के,
दो कट गए हैं दो ही बचे हैं दिन,
इस जिंदगी के,
अब तो दिखा दे दीदार,
आजा नैन निहारे तेरी राह माँ,
फुरसत मिले तो एक बार।।
नीच अधम पापी बालक ये,
तेरा तुझे कैसे मनाये,
क्या मैं करूँ जो ऊँचे पहाड़ों से तू,
दौड़ी चली आये,
हो जाये मेरा भी उद्धार,
आजा नैन निहारे तेरी राह माँ,
फुरसत मिले तो एक बार।।
बचपन जवानी खेल में खोये,
दिन यूँ ही गुजारे,
सर पे बुढ़ापा आया जो माता ‘लक्खा’,
तुझको पुकारे,
सुन ले तू विनती एक बार,
आजा नैन निहारे तेरी राह माँ,
फुरसत मिले तो एक बार।।
फुर्सत मिले तो एक बार माँ,
आजा नैन निहारे तेरी राह माँ,
फुरसत मिले तो एक बार।।