दोहा
श्री राधा राधा रटो,
छोड़ जगत की आस।
ब्रज विपिन विचरत रहो,
कर वृन्दावन वास।।
राधे राधे कहा कीजिये,
बैठे चुप ना रहा कीजिये,
राधे राधे कहा कीजिये।।
गर आ ही गए हो तुम,
बैठे हो कीर्तन में,
फिर लाज-शरम कैसी,
क्या दुविधा में है मन,
मौका है गुनगुना लीजिये,
बैठे चुप ना रहा कीजिये,
राधे राधे कहा कीजिये।।
श्री नाम रसामृत का,
जिसने रसपान किया,
श्यामा प्यारी जी ने,
उसका कल्याण किया,
प्याला मुख से लगा लीजिये,
बैठे चुप ना रहा कीजिये,
राधे राधे कहा कीजिये।।
ये कृष्ण प्रिया राधे,
कर दे जो कृपा-दृष्टि,
सच जानो जीवन में,
आनंद की हो वृष्टि,
दर्द दिल का सुना लीजिये,
बैठे चुप ना रहा कीजिये,
राधे राधे कहा कीजिये।।
जहाँ शांत पुष्प इनकी,
भक्ति के खिलते हैं,
श्री राधा जी के संग,
उन्हें कृष्ण भी मिलते हैं,
छवि दिल में बसा लीजिये,
बैठे चुप ना रहा कीजिये,
राधे राधे कहा कीजिये।।
राधे राधे कहा कीजिये,
बैठे चुप ना रहा कीजिये,
राधे राधे कहा कीजिये।।