– श्लोक –
दरबार हज़ारों देखे हैं,
पर माँ के दर सा कोई दरबार नहीं,
जिस गुलशन में माँ का नूर न हो,
ऐसा तो कोई गुलज़ार नहीं,
दुनिया से भला मैं क्या माँगूँ,
दुनिया तो एक भिखारन है,
माँगता हूँ अपनी माता से,
जहाँ होता कभी इनकार नहीं।।
मैय्या है मेरी शेरोवाली,
शान है माँ की बड़ी निराली,
सच्चा है माँ का दरबार,
मैय्या का जवाब नहीं।।
ऊँचे पर्वत भवन निराला,
भवन में देखो सिंह विशाल,
सिंह पे है मैय्या जी सवार,
मैय्या का जवाब नहीं।।
माथे की बिंदियाँ चम-चम चमके,
हाथों का कंगना खन-खन खनके,
लाल गले में हार,
मैय्या का जवाब नहीं।।
माँ है दुर्गा, माँ है काली,
भक्तों की झोली भरने वाली मैया,
करती बेड़ा पार,
मैय्या का जवाब नहीं।।
नंगे पैरों अकबर आया,
ला सोने छत्र चढ़ाया,
दूर किया अहंकार,
मैय्या का जवाब नहीं।।
मैय्या है मेरी शेरोवाली,
शान है माँ की बड़ी निराली,
सच्चा है माँ का दरबार,
मैय्या का जवाब नहीं।।