दोहा –
तेरी छाया में,
तेरे चरणों में,
मगन हो बैठूं,
तेरे भक्तों में।।
तेरे दरबार में मैया,
ख़ुशी मिलती है,
ज़िंदगी मिलती है,
रोतों को हँसी मिलती है।।
इक अजब सी मस्ती,
तन मन पे छाती है,
हर इक जुबां तेरे ओ मैया,
गीत गाती है,
बजते सितारों से,
मीठी पुकारों से,
गूंजे जहाँ सारा,
तेरे ऊँचे जयकारों से,
मस्ती में झूमे,
तेरा दर चूमे,
तेरे चारों तरफ़,
दुनिया ये घूमें,
ऐसी मस्ती भी भला क्या,
कहीं मिलती है,
तेरे दरबार में मैया,
ख़ुशी मिलती है।।
मेरी शेरोंवाली माँ,
तेरी हर बात अच्छी है,
करनी की पूरी है,
माता मेरी सच्ची है,
सुख दुख बाँटती है,
अपना बनाती है,
मुश्किल में बच्चे को,
माँ ही काम आती है,
रक्षा करती है,
भक्त अपने की,
बात सच्ची करती,
उनके सपनों की,
सारी दुनिया की दौलत,
यहीं मिलती है,
तेरे दरबार में मैया,
ख़ुशी मिलती है।।
रोता हुआ आये जो,
हँसता हुआ जाता है,
मन की मुरादों को,
वो पाता हुआ जाता है,
किस्मत के मारों को,
रोगी बीमारों को,
कर दे भला चंगा मेरी माँ,
अपने दुलारों को,
पाप कट जाए,
चरण छूने से,
महकती है दुनिया,
माँ धुने से,
फिर तो माँ ऐसी कभी क्या,
कहीं मिलती है,
तेरे दरबार में मैया,
ख़ुशी मिलती है।।
तेरे दरबार में,
मैया ख़ुशी मिलती है,
ज़िंदगी मिलती है,
रोतों को हँसी मिलती है।।