दोहा –
गुरु गोविंद दोनों एक हैं,
दोनों कृपानिधान।
भेद करे जो मूढ़ है ‘लख्खा’
कहते संत सुजान।।
वंदना गुरुदेव की,
करूं वंदना गुरुदेव की,
मैं वंदना गुरुदेव की,
करूं वंदना गुरुदेव की।
ब्रह्मा जी विष्णु जी शिव जी,
ब्रह्मा जी विष्णु जी शिव जी,
अर्चना त्रिदेव की,
करूं वंदना गुरुदेव की,
मैं वंदना गुरुदेव की।।
दो दया का दान मुझको,
ज्ञान चक्षु खोल दो,
सत को लख पाऊं सदा,
वरदान ये अनमोल दो।
ज्ञान का दीपक जगा दो,
ज्ञान का दीपक जगा दो,
जय हो जय सत्यदेव की,
करूं वंदना गुरुदेव की,
मैं वंदना गुरुदेव की।।
गुरु बिना सिद्धि मिले ना,
दोष दुविधा ना हटे,
गुरु बिना मुक्ति मिले ना,
पाप का घट ना फूटे।
आस एक गुरुदेव की,
आस एक गुरुदेव की मोहे,
जय हो जय जय देव की,
करूं वंदना गुरुदेव की,
मैं वंदना गुरुदेव की।।
गुरु की महिमा गाऊं मैं,
गुरु पे बलि बलि जाऊं मैं,
गुरु चरण को ध्याऊं मैं,
गुरु को ना बिराऊं मैं।
शत नमन सतगुरु चरण में,
शत नमन सतगुरु चरण में,
जय हो जय गुरुदेव की,
करूं वंदना गुरुदेव की,
मैं वंदना गुरुदेव की।।
वंदना गुरुदेव की,
करूं वंदना गुरुदेव की,
मैं वंदना गुरुदेव की,
करूं वंदना गुरुदेव की।
ब्रह्मा जी विष्णु जी शिव जी,
ब्रह्मा जी विष्णु जी शिव जी,
अर्चना त्रिदेव की,
करूं वंदना गुरुदेव की,
मैं वंदना गुरुदेव की।।
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